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"ग़ज़ल" बहुत बिख़री हूँ अब तो सिमट जाने दो। ऐ हवाओं अब तो मुझको घर आने दो।। मेरे अफ़साने बिख़र गये इन बादियों में। अब तो जाकर लबों ...